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July 10, 2025May 7, 2025

अतीत का बोझ और नई शुरुआत

अतीत का बोझ

 

कबीरपुर गाँव में धीरू नाम का एक युवक रहता था। वह साधारण परिवार से था, लेकिन उसकी सबसे बड़ी कमजोरी यह थी कि वह हमेशा अतीत की बातों में उलझा रहता था। अगर कोई उसे कुछ उल्टा-सीधा बोल देता, तो वह उसी बात को दिन-रात सोचता रहता। वह या तो उस बात का जवाब देने की योजना बनाता, या उस व्यक्ति से बदला लेने के तरीके सोचता रहता। उसका मन लगातार बेचैन रहता और धीरे-धीरे उसका स्वास्थ्य भी गिरने लगा। वह हर समय चिंता और नकारात्मक विचारों में डूबा रहता था।

एक दिन उसका बचपन का दोस्त, अर्जुन, उससे मिलने आया और उसकी स्थिति देखकर चिंतित हो गया। उसने धीरू से पूछा, “क्या बात है दोस्त, तुम इतने परेशान क्यों हो?” धीरू ने अपने मन की सारी बातें अर्जुन को बता दीं। अर्जुन ने मुस्कराते हुए कहा, “कल सुबह मेरे साथ चलो, तुम्हें किसी से मिलवाना है।”

अगली सुबह, अर्जुन उसे गाँव के एक बुजुर्ग और बहुत ज्ञानी व्यक्ति, रहीम चाचा के पास ले गया। रहीम चाचा पूरे गाँव में अपने जीवन अनुभव और समझदारी के लिए प्रसिद्ध थे। धीरू ने उन्हें अपनी परेशानी और अतीत में उलझे रहने की आदत के बारे में बताया।

रहीम चाचा अंदर गए और एक लोटा पानी लेकर आए। उन्होंने लोटा उठाकर धीरू से पूछा, “बेटा, इस लोटे में क्या है?” धीरू ने कहा, “पानी।” रहीम चाचा ने फिर पूछा, “अगर इसे तुम कई दिनों तक ऐसे ही उठाए रखो तो क्या होगा?” धीरू ने जवाब दिया, “हाथ थक जाएगा, दर्द होगा और शायद सुन्न भी हो जाए।”

तब रहीम चाचा ने मुस्कराकर कहा, “बिलकुल! जैसे पानी से भरे लोटे को लंबे समय तक पकड़ने से दर्द होता है, वैसे ही पुराने विचारों और बीती बातों को दिल में पकड़े रखने से मन बीमार हो जाता है।”

उन्होंने समझाया कि जब कोई बात बीत जाए, तो उसे छोड़ देना चाहिए। अतीत का बोझ पकड़ कर रखना वैसे ही है जैसे ज़हर पीकर दूसरे के मरने की उम्मीद करना। जीवन में आगे बढ़ना है, तो माफ़ करना और भूलना सीखो। हर गलती एक सीख है, न कि बोझ।

 

नैतिक सीख:

अतीत का बोझ पकड़ कर बैठने से जीवन थम जाता है। सीखो, छोड़ो और आगे बढ़ो — यही सफलता का रास्ता है।

 

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