
बहुत समय पहले की बात है, एक घने वन में चीकू नाम का एक खरगोश रहता था। चीकू बहुत तेज दौड़ता था और अपनी इस खासियत पर उसे बेहद घमंड था। वह जंगल के अन्य जानवरों को तुच्छ समझता और अक्सर उनसे कहता, “तुम लोग मुझे कभी नहीं हरा सकते। मेरी चाल की कोई बराबरी नहीं कर सकता।”
चीकू का यही व्यवहार धीरे-धीरे उसे घमंडी बना रहा था। वह आए दिन किसी न किसी जानवर को रेस के लिए ललकारता और जब कोई उसे हारता हुआ देखता, तो चीकू खूब मजाक उड़ाता।
एक दिन उसने जंगल के सबसे शांत और धीमे प्राणी कछुए को चुनौती दे डाली। सभी जानवर हँसने लगे। एक खरगोश और कछुआ? यह मुकाबला तो अजीब था! लेकिन कछुए ने मुस्कराते हुए चुनौती स्वीकार कर ली। उसने कहा, “अगर तुम्हें लगता है कि मुझसे दौड़ना तुम्हारे लिए आसान है, तो चलो रेस लगा लेते हैं।”
रेस के लिए लोमड़ी को न्यायाधीश बनाया गया। सभी जानवर उत्सुकतापूर्वक इकट्ठे हो गए। रेस शुरू हुई। खरगोश बिजली की तरह दौड़ पड़ा, उछलता-कूदता, मस्ती करता हुआ वह बहुत आगे निकल गया। उसने पीछे मुड़कर देखा तो कछुआ अभी भी धीरे-धीरे चल रहा था।
खरगोश मन ही मन मुस्कराया और सोचा, “कछुआ तो अभी बहुत पीछे है, क्यों न थोड़ी देर पेड़ के नीचे आराम कर लिया जाए।” वह एक छायादार पेड़ के नीचे लेट गया। वहाँ ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी, जिससे वह आराम करते-करते गहरी नींद में सो गया।
उधर कछुआ बिना रुके, बिना थके अपने रास्ते पर steadily चलता रहा। जब वह उस पेड़ के पास से गुजरा, तो उसने खरगोश को गहरी नींद में सोते देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा। वह चुपचाप आगे बढ़ गया और अंततः निर्धारित लक्ष्य तक पहुँच गया।
कुछ देर बाद जब खरगोश की नींद खुली, तो उसने देखा कि काफी देर हो चुकी है। वह तेजी से दौड़कर मंजिल तक पहुँचा, लेकिन वहाँ पहुंचकर हैरान रह गया—कछुआ पहले से वहाँ खड़ा मुस्करा रहा था।
लोमड़ी ने विजेता के रूप में कछुए की घोषणा की। सभी जानवरों ने तालियाँ बजाईं। खरगोश शर्मिंदा होकर सिर झुका कर खड़ा रहा। उसने सीखा कि केवल तेज़ चलना काफी नहीं होता, लगातार प्रयास और धैर्य से ही सच्ची जीत हासिल होती है।
घमंड करने से कुछ नहीं मिलता, सफलता उन लोगों को मिलती है जो धैर्य और निरंतरता से प्रयास करते हैं।
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