दूर एक घने जंगल में एक बहुत विशाल और पुराना पेड़ था। उसी पेड़ की ऊँची डाल पर एक स्वार्थी कौए ने अपना घोंसला बना रखा था, जिसमें वह अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ आराम से रहता था। एक दिन स्वार्थी कौआ रोज़ की तरह भोजन की तलाश में उड़ गया और देर शाम तक वापस लौटा। लौटते समय मौसम बेहद खराब हो चुका था—आसमान में काले बादल छा गए थे और तेज़ हवाएं चल रही थीं। बारिश की बूंदें टपकने लगी थीं।
इसी बीच उसी पेड़ के पास एक कोयल भी पहुँची, जो कहीं दूर जा रही थी लेकिन तेज़ बारिश और ओलों के डर से रुकना चाहती थी। वह कौए के पास गई और विनती करने लगी, “भैया, क्या मैं कुछ देर के लिए आपके घोंसले में शरण ले सकती हूँ? बारिश बहुत तेज़ होने वाली है।” लेकिन स्वार्थी कौए ने बिना सोचे-विचारे उसे मना कर दिया, “यह मेरा घोंसला है और यहाँ कोई जगह नहीं है। तुम कहीं और देख लो।”
कोयल ने निराश होकर पेड़ के नीचे एक सूखे, गिरे हुए तने के अंदर जाकर आश्रय ले लिया। थोड़ी ही देर में तेज़ बारिश शुरू हो गई और उसके साथ भारी ओले भी गिरने लगे। ओलों की मार से पेड़ की डाली हिलने लगी और स्वार्थी कौए का घोंसला टूट कर नीचे गिर पड़ा। उस हादसे में कौए के कुछ बच्चे मारे गए और कौआ खुद भी बुरी तरह घायल हो गया।
जब बारिश रुकी, तो कोयल अपने सुरक्षित आश्रय से बाहर निकली और देखा कि स्वार्थी कौए का पूरा परिवार तबाह हो चुका है। स्वार्थी कौआ घायल अवस्था में पड़ा था। उसने कोयल से पूछा, “तुम्हें कुछ नहीं हुआ?” कोयल ने केवल मुस्कुरा कर देखा और बिना कुछ बोले उड़ गई।
हमें केवल अपने स्वार्थ के बारे में नहीं सोचना चाहिए। किसी की मदद करने से ही सच्ची इंसानियत प्रकट होती है। जब हम दूसरों के भले की सोचते हैं, तो जीवन में अच्छा लौटकर ज़रूर आता है।
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