
झुरी नाम का एक गरीब व्यक्ति एक छोटे से गाँव में रहता था। उसका जीवन यापन मुर्गियों के अंडे बेचकर चलता था। उसके पास लगभग पचास मुर्गे और मुर्गियाँ थीं, जिन्हें वह बड़े प्यार से पालता था। इन मुर्गियों में से एक मुर्गा बेहद झगड़ालू और घमंडी था। वह खुद को सबसे ताकतवर समझता था और चाहता था कि सारे मुर्गे-मुर्गियाँ उसकी बात माने और उसकी बादशाहत स्वीकार करें।
इस घमंडी मुर्गे की आदतों से बाकी सभी मुर्गे और मुर्गियाँ बहुत परेशान थे। वह आए दिन किसी न किसी से लड़ाई करता, कभी किसी को चोंच मारता तो कभी पंख नोचता। हालांकि झुरी को इस मुर्गे की हरकतों की भनक नहीं थी क्योंकि जब वह पास आता, तब यह मुर्गा शांत बना रहता।
एक दिन उस मुर्गे का अहंकार चरम पर पहुँच गया। उसने उसी मुर्गीघर में रहने वाले एक शांत और मजबूत मुर्गे से लड़ाई छेड़ दी। दोनों में भयंकर लड़ाई होने लगी। देखते-देखते वे लड़ते हुए मुर्गीघर से बाहर निकल आए और दोनों लहूलुहान हो गए। लेकिन घमंडी मुर्गा हार मानने को तैयार नहीं था। अंततः वह दूसरे मुर्गे को हरा देता है और अपनी जीत पर घमंड से फूलने लगता है।
फिर वह मुर्गा अपनी जीत का प्रदर्शन करने के लिए मुर्गीघर की छत पर चढ़ गया और जोर-जोर से बांग देने लगा, मानो सबको अपनी ताकत दिखाना चाहता हो। लेकिन उसी समय आकाश में उड़ रही एक तेज़ नजर वाली चील ने उसे देख लिया। चील बिजली की गति से नीचे आई और घमंडी मुर्गे को अपने पंजों में दबाकर उड़ गई।
यह दृश्य देखकर मुर्गीघर के बाकी मुर्गे और मुर्गियाँ राहत की साँस लेने लगे। उनके लिए यह दिन किसी उत्सव से कम नहीं था क्योंकि अब उन्हें उस दंभी मुर्गे से छुटकारा मिल गया था।
घमंड और अहंकार अंततः विनाश का कारण बनते हैं। जो दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करता है, वह स्वयं गिर जाता है।
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