एक हरे-भरे जंगल में एक पेड़ की ऊँची शाखा पर एक कौआ बैठा हुआ था। वह बहुत खुश था, क्योंकि उसे एक घर से बची हुई रोटी का टुकड़ा मिल गया था, जिसे वह लेकर उड़ आया था। वह उस रोटी को मज़े से खाने ही वाला था कि तभी नीचे से एक भूखी लोमड़ी उधर से गुज़री। जैसे ही लोमड़ी ने कौए के मुंह में रोटी देखी, उसके मुंह में पानी आ गया।
लोमड़ी चालाक थी। उसने सोचा अगर वह सीधे कौए से रोटी मांगेगी, तो वह कभी नहीं देगा। इसलिए उसने एक योजना बनाई। वह पेड़ के नीचे जाकर बड़ी ही मीठी आवाज़ में बोली, “अरे कौवे भैया! आप तो बहुत सुंदर लगते हो, और मैंने सुना है कि आपकी आवाज़ तो बेहद मधुर है। क्या आप मेरे लिए एक मधुर गीत गा सकते हो?”
लोमड़ी की मीठी बातों और तारीफों से कौआ फूल कर कुप्पा हो गया। उसे लगा कि सच में उसकी आवाज़ बहुत अच्छी है और अब समय आ गया है कि वह अपनी गायकी का प्रदर्शन करे। जैसे ही उसने गाने के लिए अपना मुंह खोला, रोटी का टुकड़ा नीचे गिर गया।
लोमड़ी पहले से तैयार खड़ी थी, उसने तुरंत रोटी उठाई और तेजी से वहाँ से भाग गई। कौआ तब समझा कि यह सब लोमड़ी की योजना थी और वह उसके झूठे प्रशंसा में आकर मूर्ख बन गया। उसे बहुत पछतावा हुआ कि वह इतनी आसानी से किसी की चापलूसी में आ गया और अपनी रोटी खो बैठा।
हमें कभी भी झूठी तारीफों और चापलूसी में नहीं आना चाहिए। ऐसे लोग अक्सर अपने स्वार्थ के लिए हमारी भावनाओं का फायदा उठाते हैं। विवेक से काम लेना और समझदारी से फैसला करना ही सच्ची बुद्धिमानी है।
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