
बहुत समय पहले की बात है, एक विशाल और गहरा जंगल था, जिसके दूसरी ओर एक और घना जंगल फैला हुआ था। इन दोनों जंगलों के बीच एक बहुत ही गहरी और खतरनाक खाई थी। खाई के नीचे एक तेज़ बहाव वाली नदी बहती थी, जिसकी आवाज़ दूर-दूर तक सुनाई देती थी। इस खाई को पार करने का कोई पुल या रास्ता नहीं था। लेकिन सौभाग्य से, एक तूफानी रात के बाद एक बड़ा और मजबूत पेड़ गिरकर दोनों किनारों के बीच एक प्राकृतिक पुल बन गया था।
जंगल के जानवर उसी गिरे हुए पेड़ का सहारा लेकर एक जंगल से दूसरे जंगल जाया करते थे। लेकिन यह रास्ता इतना संकरा था कि एक बार में सिर्फ एक ही जानवर उस पर से पार हो सकता था। सभी जानवर बहुत सावधानी से इस रास्ते का इस्तेमाल करते और यदि सामने से कोई आता दिखता, तो एक जानवर पीछे हटकर पहले दूसरे को जाने देता।
एक दिन दो बकरियाँ, एक जंगल से दूसरे जंगल की ओर जा रही थीं। संयोगवश, दोनों एक ही समय पर उस पेड़ के बीचों-बीच पहुँच गईं। अब समस्या यह थी कि दोनों के बीच रास्ता बहुत ही तंग था, और पीछे हटे बिना आगे बढ़ना असंभव था। दोनों बकरियाँ रुक गईं और एक-दूसरे को घूरने लगीं।
पहली बकरी बोली, “तू पीछे हट, मैं पहले जाऊँगी।”
दूसरी बकरी बोली, “क्यों पीछे हटूँ? पहले मैं आई थी, तू हट।”
धीरे-धीरे बात बढ़ने लगी और देखते ही देखते दोनों में बहस झगड़े में बदल गई। दोनों ने अपने-अपने सींग भिड़ा लिए और एक-दूसरे को हटाने के लिए ज़ोर लगाने लगीं। उनका संतुलन बिगड़ गया और दोनों ही तेज़ बहाव वाली नदी में जा गिरीं। थोड़ी ही देर में पानी उन्हें बहाकर दूर ले गया।
कुछ दूरी पर एक बूढ़ी बकरी यह दृश्य देख रही थी। उसने अफसोस भरे स्वर में कहा, “काश इनमें से कोई एक थोड़ी समझदारी दिखा देता, तो दोनों की जान बच जाती।”
जिद और अहंकार का परिणाम अक्सर नुकसानदायक होता है। यदि समय रहते हम थोड़ी विनम्रता और समझदारी से काम लें, तो हम खुद को और दूसरों को भी कठिनाइयों से बचा सकते हैं। पीछे हटना हमेशा हार नहीं, बल्कि बुद्धिमानी हो सकती है।
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