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September 9, 2025June 15, 2025

धोबी का कुत्ता न घर का, न घाट का

धोबी का कुत्ता

 

होशियारपुर गाँव में एक गरीब लेकिन मेहनती धोबी रहता था, जिसका नाम मोहन था। मोहन अपना जीवन यापन गाँव के औरतों-पुरुषों के कपड़े धोकर करता था। उसका एक प्यारा सा कुत्ता भी था, जिसका नाम टॉमी था। टॉमी बहुत वफादार और समझदार था। मोहन अपनी मेहनत से टॉमी की हर ज़रूरत पूरी करता था और टॉमी भी मोहन के प्रति बहुत लगाव रखता था।

एक दिन मोहन शहर से कपड़े धोने का गट्ठर लेकर वापस गाँव लौट रहा था। रास्ते में उसने एक घायल कुत्ता देखा जो दर्द से कराह रहा था। उस कुत्ते का पैर घायल था और खून बह रहा था। मोहन को उस पर बहुत दया आई। उसने घायल कुत्ते को अपने घर ले जाकर उसकी देखभाल की और धीरे-धीरे कुत्ता ठीक हो गया। उस घायल कुत्ते का नाम था शेरू। अब शेरू मोहन के घर पर टॉमी के साथ रहने लगा।

एक दिन जब मोहन शहर गया हुआ था, तो शेरू के साथ कुछ जंगली कुत्ते आए। उन्होंने शेरू से कहा, “तुम जानते हो जंगल में हम कुत्तों को सारे जानवर राजा की तरह मानते हैं। यहाँ तुम्हें खूब सम्मान मिलेगा और खाने-पीने की कमी नहीं होगी। हमारे साथ आओ, जंगल में चलो।” शेरू जंगली कुत्तों की बातों में आ गया और उनके साथ जंगल चला गया।

जब मोहन घर लौटा, तो उसने शेरू को नहीं देखा। वह चिंतित हो गया और जंगल में उसकी खोज करने चला। अंत में शेरू को वह जंगल के पास पाया और घर ले आया। मोहन ने शेरू को समझाया कि जंगल जाना ठीक नहीं, वह गाँव में ही सुरक्षित रहेगा।

लेकिन कुछ दिनों बाद फिर से वही जंगली कुत्ते आए और शेरू को बहकाकर जंगल ले गए। मोहन को इस बार बहुत गुस्सा आया और उसने शेरू को खोजने की जहमत नहीं उठाई। कुछ दिन बाद मोहन के कुत्ते पर जंगली कुत्तों ने हमला कर दिया। शेरू गंभीर रूप से घायल हो गया और सोचने लगा कि उसे वापस मोहन के पास जाना चाहिए।

शेरू जब वापस मोहन के घर पहुंचा, तो मोहन ने उसे डंडे से मारने की कोशिश की और उसे जंगल की तरफ वापस भगा दिया। इस तरह मोहन का कुत्ता न घर का रहा, न घाट का।

नैतिक सीख:

कभी भी किसी के बहकावे में नहीं आना चाहिए। अपने बीते समय और उसकी मदद करने वालों को कभी नहीं भूलना चाहिए।

 

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