
बहुत समय पहले की बात है, एक घने जंगल के किनारे दो कौवे रहते थे—चुन्नू और मुन्नू। दोनों एक-दूसरे के बेहद अच्छे मित्र थे। वे हर दिन साथ में भोजन की तलाश में उड़ान भरते, साथ खेलते और साथ ही विश्राम करते थे। हालाँकि, दोनों की सोच और व्यवहार में बड़ा अंतर था। चुन्नू बहुत समझदार, होशियार और जुझारू था, जबकि मुन्नू थोड़ा आलसी और परंपरागत सोच वाला था। वह हर काम पुराने ढर्रे पर ही करता था और नई बातें समझने या अपनाने की कोशिश नहीं करता था।
एक दिन गर्मी बहुत अधिक थी। सूर्य आसमान में चमक रहा था और धरती तवे की तरह तप रही थी। चुन्नू और मुन्नू दूर-दूर तक उड़ते रहे, लेकिन न तो खाने को कुछ मिला और न ही पीने को पानी। दोनों की हालत बहुत खराब हो गई थी, गला सूख चुका था और आँखों के आगे अंधेरा सा छाने लगा था। तभी उन्हें एक पुराने कुएं के पास दो घड़े रखे दिखाई दिए।
दोनों तेजी से वहाँ उतरे और देखा कि घड़ों में थोड़ा-थोड़ा पानी तो है, लेकिन वह इतनी गहराई पर था कि सीधे चोंच से पहुँचना मुश्किल था। मुन्नू ने बिना सोचे समझे वही किया जो उसने पहले देखा था—पास में पड़े कंकड़ एक-एक करके घड़े में डालने लगा ताकि पानी ऊपर आ जाए। यह एक बहुत पुरानी तकनीक थी, जिसे वह पहले किसी बुजुर्ग कौवे से सुन चुका था।
वहीं चुन्नू ने स्थिति को समझा और सोचा कि अगर वह भी यही तरीका अपनाएगा, तो बहुत देर हो जाएगी और शायद तब तक वह बेहोश भी हो सकता है। वह उड़कर इधर-उधर तलाश करने लगा। कुछ ही दूरी पर उसे एक टूटी हुई नली पड़ी मिली। वह नली उठाकर लाया और उसे घड़े में डाल दिया। पाइप के ज़रिए उसने नीचे से पानी खींचा और अपनी प्यास बुझा ली। उसके बाद वह मुन्नू को आवाज़ देकर उड़ गया।
उधर मुन्नू अब भी कंकड़ डाल रहा था, लेकिन पानी अभी भी बहुत नीचे था। जब उसने देखा कि चुन्नू तो उड़ भी चुका है, तब उसे समझ आया कि समय के साथ नई सोच और तरीका अपनाना कितना जरूरी होता है। काश उसने भी चुन्नू की तरह कुछ अलग सोचा होता, तो वह भी अपनी प्यास बुझा पाता।
पुरानी सोच से चिपके रहने के बजाय, परिस्थिति के अनुसार नई राहें अपनाना ही समझदारी है।
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