एक बार की बात है, एक घना जंगल था जहाँ एक नाला बहता था। एक दिन गर्मी के मौसम में एक नन्हा मेमना उस नाले के किनारे पानी पीने आया। वह शांति से अपनी प्यास बुझा रहा था।
उसी समय, एक भूखा और क्रूर भेड़िया भी पानी पीने के लिए नाले के ऊपरी हिस्से पर आ गया। उसने मेमने को देखा और सोचा, “अरे! यह तो एक अच्छा शिकार है। इसे पकड़ना आसान होगा।”
लेकिन भेड़िया चालाक था। वह सीधा हमला नहीं करना चाहता था, क्योंकि वह अपने किए को सही साबित करना चाहता था। इसलिए उसने एक बहाना ढूंढने की ठानी। उसने गुस्से से चिल्लाकर कहा,
“ऐ मेमने! तू मेरा पानी क्यों गंदा कर रहा है?”
मेमना डरते-डरते बोला,
“श्रीमान, मैं तो नाले के नीचे पानी पी रहा हूँ। मैं ऊपर का पानी कैसे गंदा कर सकता हूँ?”
भेड़िया चिढ़ गया क्योंकि उसका पहला बहाना काम नहीं आया। उसने फिर कहा,
“पिछले साल तूने मुझे गालियाँ दी थीं!”
मेमना डरते हुए बोला,
“नहीं श्रीमान, उस समय तो मैं पैदा भी नहीं हुआ था। गालियाँ कैसे दे सकता हूँ?”
भेड़िया अब और भी क्रोधित हो गया और चिल्लाया,
“अगर तू नहीं, तो जरूर तेरे पिता ने मुझे गालियाँ दी होंगी। इसका बदला तो लेना ही पड़ेगा।”
इतना कहकर भेड़िया मेमने पर झपटा और उसे मार डाला।
जब कोई अत्याचारी ताकतवर होता है, तो वह सही-गलत की परवाह नहीं करता। उसे सिर्फ बहाना चाहिए होता है अपने अन्याय को सही ठहराने के लिए। यह कहानी हमें सिखाती है कि केवल तर्क और सच्चाई से अन्यायी को हराना हमेशा संभव नहीं होता।
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