
रामपुर नाम का एक छोटा-सा गाँव था, जो अपनी सादगी, मेहनती लोगों और शांतिपूर्ण जीवनशैली के लिए प्रसिद्ध था। यहाँ के लोग समय के बहुत पाबंद थे और हर रोज सूरज उगने से पहले ही अपने काम में लग जाते थे। इसी गाँव में झुरी नाम का एक मेहनती धोबी रहता था। वह अपने काम के साथ-साथ कुछ पालतू जानवर भी पालता था, जिनमें खासकर मुर्गे और मुर्गियाँ शामिल थे।
झुरी के मुर्गे और मुर्गियाँ सुबह-सुबह जोर-जोर से बांग देते, जिससे पूरा गाँव जाग उठता। यह उनकी दिनचर्या बन चुकी थी और उन्हें लगता था कि गाँव के लोग उन्हीं की बांग सुनकर उठते हैं। यही सोच उनके मन में धीरे-धीरे गर्व में बदलने लगी।
एक दिन की बात है, गाँव के कुछ शरारती बच्चे खेलते-खेलते झुरी के मुर्गों के बाड़े के पास आ गए। उन्होंने मुर्गों और मुर्गियों को खूब छेड़ा, उनके पंख खींचे, दौड़ाया और परेशान किया। इस घटना से मुर्गे और मुर्गियाँ बहुत आहत हुए। रात होते ही सभी मुर्गे और मुर्गियाँ एक कोने में इकट्ठा हुए और एक आपसी निर्णय लिया कि अब वे किसी को सुबह उठाने के लिए बांग नहीं देंगे। उनका सोचना था कि जब हम बांग नहीं देंगे तो गाँव के लोग देर तक सोए रहेंगे और तब उन्हें हमारी अहमियत समझ में आएगी।
अगली सुबह जैसे ही सूरज निकला, मुर्गे और मुर्गियाँ शांत रहे। उन्होंने सोचा कि अब गाँव सोता ही रहेगा। लेकिन जब वे बाड़े से बाहर निकले, तो उन्होंने देखा कि गाँव के लोग पहले की ही तरह उठ चुके थे और अपने-अपने काम में लगे हुए थे। किसान खेतों में हल चला रहे थे, महिलाएँ पानी भर रही थीं और बच्चे स्कूल के लिए तैयार हो रहे थे।
यह देख मुर्गे और मुर्गियाँ अचंभित रह गए। उन्हें एहसास हुआ कि गाँव के लोग उनकी बांग पर नहीं, बल्कि अपनी जिम्मेदारी और अनुशासन पर जागते हैं। उन्होंने यह भी समझा कि उन्होंने अपनी अहमियत को बढ़ा-चढ़ाकर सोचा और यह घमंड उनके भ्रम का कारण बना।
अपने महत्व का घमंड कभी नहीं करना चाहिए, क्योंकि दुनिया बिना किसी के भी चल सकती है।
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