एक बार की बात है, एक कौआ आसमान में उड़ते हुए राजा के महल के पास बने चिड़ियाघर के पास से गुजर रहा था। चिड़ियाघर में बहुत सारे रंग-बिरंगे पक्षी थे, जिनमें से मोर सबसे अधिक आकर्षक थे। कौआ इन मोरों को देखकर बहुत खुश हुआ और सोचा, “ये मोर कितने भाग्यशाली हैं। इन्हें राजा के महल में रहकर अच्छे-अच्छे आहार मिलते होंगे।”
कौआ अब यह तय कर चुका था कि वह किसी भी कीमत पर मोर की नकल कर के मोरों के बीच रहकर उनकी तरह आनंदमयी जीवन जीना चाहता था। उसने सोचा, “अगर मैं भी मोरों के जैसे दिखूं, तो वे मुझे भी अपना दोस्त मानेंगे।” इस विचार से प्रेरित होकर, वह जंगल से गिरे हुए मोर के पंखों को इकट्ठा करने लगा और उन पंखों को अपने शरीर में जोड़ लिया। अब वह एक नकली मोर बन चुका था।
कौआ अब चुपके-चुपके महल के चिड़ियाघर में घुस गया और कुछ दिन तक चुपचाप वहां रहने लगा। वह मोर की नकल कर मोरों के बीच रहने की कोशिश करता, लेकिन किसी से बात नहीं करता। एक दिन कुछ मोरों ने उससे बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन कौआ अपनी असलियत छिपा नहीं पाया। मोरों को समझ में आ गया कि यह पक्षी असली मोर नहीं है। उन्होंने कौए पर हमला कर दिया और उसके द्वारा लगाए गए नकली पंखों को नोच डाला। इसके बाद उन्होंने उसे महल से बाहर भगा दिया।
कौआ बहुत अपमानित हुआ और उसने समझा कि बाहरी सुंदरता और दिखावा किसी काम का नहीं है। असल बात तो आंतरिक गुणों में होती है।
बाहरी सुंदरता से अधिक महत्वपूर्ण आंतरिक सुंदरता होती है। असली पहचान और सम्मान अपने गुणों और सच्चाई से मिलता है, न कि दिखावे से।
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