एक समय की बात है, एक राज्य में एक अत्यंत बुद्धिमान और न्यायप्रिय राजा राज करता था। उसका दरबार दूर-दूर तक अपने न्याय और सूझबूझ के लिए प्रसिद्ध था। एक दिन दरबार में दो व्यक्ति आपस में लड़ते हुए लाए गए। दोनों एक-दूसरे पर चोरी का आरोप लगा रहे थे। मामला उलझा हुआ था और दोनों इतने विश्वास के साथ बोल रहे थे कि यह तय करना कठिन हो गया कि सच कौन बोल रहा है।
राजा ने दोनों की बातें ध्यान से सुनीं। दोनों ही अपनी बात को सही ठहराने में लगे थे और बार-बार एक-दूसरे पर दोष मढ़ रहे थे। राजा ने देखा कि केवल शब्दों से सच्चाई का पता लगाना मुश्किल होगा, इसलिए उसने एक अनोखा तरीका अपनाया। उसने अपने सेवकों को एक बाल्टी में पानी लाने का आदेश दिया और कहा कि यह एक जादुई पानी है – जो व्यक्ति झूठ बोलेगा, उसके हाथ इस पानी में डालते ही लाल हो जाएंगे।
राजा ने दोनों व्यक्तियों को बारी-बारी से उस पानी में हाथ डालने के लिए कहा। पहले व्यक्ति ने निडर होकर अपने हाथ पानी में डाले, उसके हाथों में कोई बदलाव नहीं आया। अब दूसरा व्यक्ति थोड़ी देर तक झिझकता रहा, लेकिन अंततः उसने भी पानी में हाथ डाल दिए। जैसे ही उसने हाथ डाले, वह डर गया, लेकिन पानी का रंग बिल्कुल नहीं बदला। फिर भी उसका चेहरा पीला पड़ गया और वह घबराकर चिल्ला उठा – “मैं मानता हूँ! मैंने ही झूठा आरोप लगाया था। मैंने चोरी नहीं की, पर अपने विरोधी को फँसाने के लिए उस पर झूठा आरोप लगाया।”
राजा मुस्कराया और कहा, “यह पानी साधारण ही है, पर डर और अपराधबोध सबसे बड़ा सच बाहर लाने वाला जादू है।” राजा ने झूठ बोलने वाले व्यक्ति की ईमानदारी से कबूलनामे को सराहा और उसे सजा देने के बजाय सच बोलने के लिए इनाम दिया, ताकि लोग यह सीख सकें कि गलती स्वीकार करने में भी साहस होता है।
हमें जीवन में हमेशा सच बोलने का साहस करना चाहिए। सत्य न केवल सम्मान दिलाता है, बल्कि समाज में आपके चरित्र की गवाही भी देता है। झूठ से तुरंत बचाव मिल सकता है, पर दीर्घकालिक भरोसा हमेशा सच से ही मिलता है।
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