एक समय की बात है, एक गांव में एक गरीब लकड़हारा रहता था। उसका जीवन बहुत ही साधारण और कठिन था। वह रोज़ जंगल में जाकर पेड़ काटता, फिर उन लकड़ियों को बाजार में बेचकर जो भी पैसे मिलते, उसी से अपना और अपने परिवार का पेट पालता। हालाँकि वह बहुत गरीब था, लेकिन उसमें एक खास बात थी — उसकी ईमानदारी। वह कभी किसी का नुकसान नहीं करता और हमेशा मेहनत से कमाई हुई चीज़ को ही अपनाता।
एक दिन, वह रोज़ की तरह जंगल गया, लेकिन उसे वहां कोई सूखा पेड़ नहीं मिला जिसे वह काट सके। काफी देर तक वह इधर-उधर भटकता रहा, लेकिन कोई काम का पेड़ नहीं दिखा। थक कर वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया और सोचने लगा कि आज क्या होगा, कैसे घर खर्च चलेगा। तभी उसे तेज प्यास लगी और वह पास बहती नदी की ओर पानी पीने चला गया।
नदी किनारे उसे एक सूखा पेड़ दिखाई दिया। उसे लगा कि इसी पेड़ को काटकर आज की लकड़ियाँ ले जाए। वह पानी पीकर पेड़ पर चढ़ गया और कुल्हाड़ी से काटना शुरू किया। तभी अचानक उसका हाथ फिसला और उसकी कुल्हाड़ी सीधे नदी में गिर गई। नदी बहुत गहरी और तेज बहाव वाली थी। लकड़हारा वहीं बैठ गया और जोर-जोर से रोने लगा। उसने अपनी किस्मत को कोसना शुरू कर दिया क्योंकि अब उसके पास कोई साधन नहीं बचा था जिससे वह काम कर सके।
उसकी सच्ची पुकार सुनकर नदी से जलदेवी प्रकट हुईं। उन्होंने पूछा, “तुम क्यों रो रहे हो?” लकड़हारे ने रोते-रोते सारी बात बता दी। जलदेवी ने कहा, “मैं तुम्हारी कुल्हाड़ी ढूंढ लाती हूँ।” थोड़ी देर बाद वह एक सुनहरी कुल्हाड़ी लेकर आईं और पूछा, “क्या यह तुम्हारी है?” लकड़हारे ने कहा, “नहीं देवी, यह मेरी नहीं है।” फिर उन्होंने चांदी की कुल्हाड़ी दिखाई, पर उसने फिर मना कर दिया। अंत में उन्होंने लकड़हारे की असली लोहे की कुल्हाड़ी दिखाई, तब वह बोला, “हाँ देवी, यही मेरी कुल्हाड़ी है।”
उसकी ईमानदारी से जलदेवी बहुत प्रसन्न हुईं और उपहार स्वरूप तीनों कुल्हाड़ियाँ — सोने, चांदी और लोहे की — उसे दे दीं।
हमें हर हाल में ईमानदार रहना चाहिए। परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, सच्चाई और ईमानदारी का फल हमेशा अच्छा ही होता है।
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