रामपुर नाम का एक छोटा-सा शांत गाँव था जहाँ लोग प्रेम और सहयोग से जीवन व्यतीत करते थे। गाँव के निवासी एक-दूसरे की सहायता में हमेशा आगे रहते थे, और जीवन में सादगी और शांति पसन्द करते थे। रामपुर से थोड़ी दूरी पर एक घना जंगल था, जिसका नाम था चंपारण। उस जंगल में विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षी एक-दूसरे के साथ मिलजुल कर रहते थे। उसी जंगल में चीकू नाम का एक शरारती बंदर रहता था, जो अपनी शरारतों और नटखट व्यवहार के लिए पूरे वन में प्रसिद्ध था।
एक दिन शरारती बंदर खाने की तलाश में जंगल से बाहर निकला और रामपुर गाँव में आ पहुँचा। वहाँ उसने पंडित जी के घर में रखे एक सुंदर और भारी शंख को देखा। उसकी चमक और आकार देखकर चीकू उसे चुपचाप चुरा ले गया और वापस जंगल में लौट गया। उस रात उसे शरारत सूझी। वह पीपल के एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गया और आधी रात को शंख बजाने लगा। शंख की तेज आवाज़ सुनकर पूरे गाँव में हड़कंप मच गया। सभी लोग डर और भ्रम में पड़ गए कि इतनी रात को शंख कौन बजा रहा है? कुछ लोगों ने इसे कोई दैवी संकेत समझा तो कुछ ने बुरी शक्ति का प्रभाव।
यह शरारत एक रात की नहीं रही, चीकू बंदर अब हर रात पीपल के पेड़ पर चढ़कर शंख बजाने लगा। गाँव के लोगों की नींद खराब होने लगी, बच्चों में डर बैठ गया और पूरे गाँव में अफवाहें फैलने लगीं। एक दिन पंडित जी को अपनी शंख गायब मिली। तभी उन्हें रात में सुनाई देने वाली शंख की आवाज़ की याद आई। उन्होंने सोचा कि हो सकता है यह वही शंख हो। उन्होंने निर्णय लिया कि वे खुद जाकर इसकी जाँच करेंगे।
अगली रात पंडित जी कुछ केले लेकर चंपारण वन पहुँचे और पीपल के पेड़ के नीचे केले रख दिए। केले देखकर चीकू बंदर शंख छोड़कर नीचे कूद पड़ा। पंडित जी ने मौका देखकर शंख उठा लिया और चुपचाप गाँव लौट आए। अगले दिन उन्होंने गाँव वालों को सच्चाई बताई और बताया कि सारी परेशानी एक शरारती बंदर के कारण थी।
बिना जाँच-पड़ताल के किसी बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए। सच्चाई तक पहुँचने के लिए साहस और विवेक से काम लेना आवश्यक होता है।
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