
एक छोटे से कस्बे में कबीर नाम का एक लड़का रहता था। कबीर दिखने में तो होशियार था, लेकिन उसका स्वभाव अत्यंत स्वार्थी और मतलबी था। पढ़ाई से उसे कोई खास लगाव नहीं था और वह हमेशा अपने फायदे की सोचता रहता था। उसके माता-पिता रोज सुबह उसे स्कूल के लिए तैयार करते, और वह हर दिन किताबें और बैग लेकर घर से निकल जाता।
लेकिन स्कूल जाना तो बस एक बहाना था। असल में कबीर स्कूल की ओर जाने के बजाय मोहल्ले के ही कुछ शरारती बच्चों के साथ पार्क में जाकर मस्ती करता, खेलता-कूदता और दिन भर अपना समय यूँ ही बर्बाद करता। जब स्कूल की छुट्टी होती, तो वह भी बाकियों की तरह अपने बैग के साथ घर लौट आता, ताकि किसी को उस पर शक न हो।
समय यूँ ही बीतता गया। कक्षा में पढ़ाई चलती रही, शिक्षक गृहकार्य और नोट्स देते रहे, लेकिन कबीर को किसी बात की चिंता नहीं थी।
एक दिन उसकी कक्षा में मोहित नाम का लड़का, जो कि पढ़ाई में बहुत अच्छा था, उससे मिला। कबीर ने उससे विनती की, “मोहित, यार दो दिन के लिए अपनी कक्षा कार्य की कॉपी दे दे। मुझे कुछ काम करना है।”
मोहित ने पहले तो मना कर दिया और कहा, “तू स्कूल आता ही नहीं, तुझे कॉपी क्यों दूँ?” लेकिन कबीर ने दिखावे के आँसू बहा दिए और मजबूरी जताई। मोहित को दया आ गई और उसने अपनी कॉपी दो दिन के लिए दे दी।
लेकिन दो दिन क्या, पूरे हफ्ते तक कबीर ने कॉपी को ऐसे ही रख छोड़ा। ना कुछ लिखा, ना कुछ समझा। जब मोहित ने तीसरे दिन कॉपी वापस ली, तब तक परीक्षा सिर पर आ गई थी।
परीक्षा शुरू हुई, कबीर को कुछ भी समझ में नहीं आया। प्रश्नपत्र उसके लिए किसी पहेली से कम नहीं था। उसने जैसे-तैसे कागज भरे, लेकिन जब परिणाम आया, तो वह फेल हो गया। यह उसके लिए बहुत शर्मनाक स्थिति थी। मोहल्ले के बच्चों ने ताने मारे, घर वालों ने डांटा और वह खुद को सबके सामने लज्जित महसूस करने लगा। अब वह गली में भी निकलने से कतराने लगा।
अब कबीर को पछतावा होने लगा, लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था। उसने जो समय बर्बाद किया, वह कभी लौटकर नहीं आया।
समय की कीमत समझो, क्योंकि गया वक्त फिर कभी वापस नहीं आता।
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