
एक समय की बात है, एक गाँव में रामू नाम का एक मेहनती कुम्हार रहता था। उसके पास एक गधा था, जो रोज़ उसके मिट्टी के बने बर्तन बाज़ार तक पहुँचाने में मदद करता था। लेकिन गधा बेहद आलसी और चालाक था। वह कोई भी काम करने से कतराता था और हमेशा बहाने ढूंढ़ता रहता था ताकि काम न करना पड़े।
एक दिन कुम्हार ने गधे की पीठ पर मिट्टी के बर्तन लादे और चल पड़ा बाजार की ओर। रास्ते में एक जगह गधे ने जानबूझकर अपना पैर एक गड्ढे में डाल दिया और ज़मीन पर गिर पड़ा। उसका गिरना इतना ज़ोरदार था कि पीठ पर रखे सारे बर्तन टूट गए। कुम्हार बहुत दुखी हुआ लेकिन गधे को लेकर चुपचाप वापस लौट आया। दूसरी ओर, आलसी गधा मन ही मन बहुत खुश हुआ। उसने सोचा, “वाह! ये तो बढ़िया तरीका है बोझ से बचने का।”
अगले दिन कुम्हार फिर से नए बर्तन लादकर चल पड़ा, और गधा फिर से गड्ढे में गिर गया। लेकिन इस बार कुम्हार उसकी चालाकी समझ गया। उसे बहुत गुस्सा आया और उसने गधे को एक व्यापारी को बेच दिया।
व्यापारी रोज़ नदी पार करके माल लाता था। एक दिन उसने गधे की पीठ पर नमक की बोरियाँ लाद दीं। जैसे ही गधा नदी में गया, वह जानबूझकर पानी में गिर गया। पानी में नमक घुल गया और बोझ हल्का हो गया। गधा बहुत खुश हुआ कि उसकी तरकीब फिर काम आ गई।
अगली बार व्यापारी ने गधे की पीठ पर चीनी की बोरियाँ लादीं। गधा फिर से नदी में बैठ गया और सारी चीनी पानी में गलकर बह गई। लेकिन इस बार व्यापारी ने उसकी चालाकी पकड़ ली।
अब व्यापारी ने उसे सबक सिखाने का निश्चय किया। अगली सुबह उसने गधे के ऊपर सूखी रुई का बड़ा गट्ठर लाद दिया। जैसे ही गधा नदी में बैठा, रुई ने पानी सोख लिया और बहुत भारी हो गई। अब गधे से हिला भी नहीं गया। उसे बुरी तरह फटकार लगी और उस दिन के बाद से उसने कभी चालाकी करने की कोशिश नहीं की।
आलस्य और धोखेबाज़ी से आप कुछ समय तक दूसरों को मूर्ख बना सकते हैं, लेकिन एक न एक दिन उसका परिणाम भुगतना ही पड़ता है। मेहनत और ईमानदारी ही सच्चा रास्ता है।
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