
एक समय की बात है, एक घने जंगल में एक लोमड़ी रहती थी। वह कई दिनों से भूखी थी। शिकार नहीं मिला तो उसकी हालत बेहद खराब हो गई। शरीर कमजोर हो गया था और आँखों के आगे अंधेरा सा छाने लगा था। भूख के मारे उसकी चाल धीमी हो गई थी और पेट की आग बुझाने के लिए वह इधर-उधर भटक रही थी।
इतने में उसे प्यास भी सताने लगी, तो उसने सोचा कि पहले नदी से जाकर पानी पी लिया जाए। वह नदी के किनारे पहुँची और धीरे-धीरे पानी पीने लगी। तभी उसकी नजर नदी में खड़े एक बगुले पर पड़ी। बगुला शांति से पानी में अपनी चोंच डालकर मछली पकड़ने की कोशिश कर रहा था।
लोमड़ी की आंखों में चमक आ गई और मुँह से लार टपकने लगी। उसे बगुला अब सिर्फ एक शिकार नजर आ रहा था। लेकिन वह जानती थी कि सीधे हमला करने से बगुला उड़ सकता है, इसलिए उसने एक चाल चली।
लोमड़ी पास में पड़े एक पतले लकड़ी के टुकड़े को अपने गले में डालती है और फिर दर्द भरे स्वर में बगुले के पास जाती है। वह करुणा से भरकर कहती है, “बगुला भाई, कृपा करो। मेरे गले में हड्डी अटक गई है और मैं बहुत दर्द में हूँ। तुम तो इतने नेक और मददगार हो, अपनी लंबी चोंच से अगर मेरा गला साफ कर दो, तो मैं जीवनभर तुम्हारी आभारी रहूँगी।”
बगुला पहले थोड़ा झिझका और बोला, “तुम तो शिकारी हो। क्या भरोसा कि मेरी गर्दन मुँह में डालने पर तुम मुझे खा न जाओ?”
लोमड़ी ने आँसू बहाते हुए कहा, “नहीं नहीं! मैं तुम्हें अपना सच्चा मित्र मानती हूँ। ऐसा अन्याय मैं कभी नहीं कर सकती। मेरी हालत देखो, मैं तो वैसे ही मरने के कगार पर हूँ।”
बगुला दया में आ गया और लोमड़ी की बातों में फँस गया। उसने अपनी लंबी चोंच लोमड़ी के मुँह में डाली और लकड़ी के टुकड़े को बाहर निकालने की कोशिश की।
जैसे ही बगुले की गर्दन लोमड़ी के मुँह में पूरी तरह घुसी, लोमड़ी ने अपनी चाल दिखा दी। उसने बगुले को जोर से पकड़ा, दबोचा और उसे वहीं मार डाला। फिर बड़ी चतुराई से बगुले को खा गई।
अजनबी पर बिना सोचे-समझे भरोसा करना खतरनाक हो सकता है। चालाक और स्वार्थी लोग मासूमियत का फायदा उठा सकते हैं।
कुछ और मज़ेदार कहानियों के लिए यहाँ क्लिक करें