
एक बार की बात है, गर्मी अपने चरम पर थी। सूरज आसमान में आग उगल रहा था और धरती तवे की तरह तप रही थी। ऐसे में दो राही, यानी दो मुसाफिर, दूर के किसी गाँव की ओर पैदल यात्रा कर रहे थे। तपती धूप में उनकी हालत बहुत खराब हो चुकी थी। उनके मुँह सूख गए थे, शरीर थककर चूर हो चुका था, और हर कदम भारी लगता था। पानी की एक-एक बूंद उनके लिए अमूल्य बन चुकी थी, लेकिन रास्ते में न तो कोई तालाब दिख रहा था और न ही कोई छायादार जगह जहाँ वे थोड़ा विश्राम कर सकें।
चलते-चलते कई घंटे बीत गए। उनके पैर अब जवाब देने लगे थे। तभी उनकी नजर दूर एक बड़े से पेड़ पर पड़ी। वह पेड़ हरा-भरा और घना था। उसकी शाखाएँ चारों ओर फैली हुई थीं और उसकी छाया शीतल लग रही थी। दोनों राही दौड़ते हुए पेड़ के नीचे पहुँचे और छाया में बैठकर राहत की साँस ली। कुछ देर बाद उनमें से एक राही चारों ओर गिरे सूखे पत्तों को देखता हुआ बोला, “कितना बेकार पेड़ है यह! न फल देता है, न फूल, बस सूखे पत्ते गिराकर गंदगी फैलाता है।”
उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अचानक पेड़ से एक गंभीर आवाज आई, “हे मानव! तुम मेरी छाया में बैठे हो, मेरी वजह से इस झुलसती गर्मी में विश्राम पा रहे हो, और फिर भी मेरी निंदा कर रहे हो? क्या तुम्हें मेरी अच्छाइयाँ नजर नहीं आतीं? मेरे पत्तों का उपयोग औषधियाँ बनाने में होता है। मैं दिन-रात बिना थके तुम्हें शुद्ध हवा देता हूँ। मेरी लकड़ियाँ तुम्हारे लिए घर बनाने और जीवनयापन में सहायक होती हैं। और सबसे बड़ी बात, मैं इस पृथ्वी के संतुलन को बनाए रखने में मदद करता हूँ। क्या इन सबके बाद भी मैं बेकार हूँ?”
पेड़ की बातें सुनकर दोनों राही शर्मिंदा हो गए। उन्हें समझ में आ गया कि हर चीज की अपनी उपयोगिता होती है, भले ही वह पहली नजर में साधारण या बेकार क्यों न लगे।
इस संसार में कोई भी वस्तु या व्यक्ति व्यर्थ नहीं होता। हर किसी का अपना महत्व और उपयोग होता है, बस हमें उसे समझने की दृष्टि रखनी चाहिए।
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