
एक समय की बात है, एक किसान अपने खेतों में रोज़ की तरह मेहनत से काम कर रहा था। सूरज की गर्मी और पसीने के बीच वह ज़मीन खोदने में व्यस्त था। तभी अचानक उसे महसूस हुआ कि उसके पैर में कुछ चुभा है। उसने झट से नीचे देखा और पाया कि एक साँप उसके पास से तेजी से भाग रहा है। साथ ही, एक चूहा भी उसी दिशा में भाग रहा था। किसान घबरा गया, लेकिन फिर उसे ध्यान आया कि साँप ने शायद उसे काटा नहीं है, बल्कि चूहा उसके पैर के पास था।
उसने अपने पैर को गौर से देखा और पाया कि घाव बहुत गहरा नहीं है और कोई विष का असर भी नहीं हो रहा। सौभाग्य से वह साँप जहरीला नहीं था। किसान ने थोड़ी सावधानी बरती और कुछ घरेलू इलाज कर अपने काम पर वापस लग गया। कुछ दिनों में उसका घाव पूरी तरह भर गया।
किंतु किस्मत को कुछ और मंज़ूर था। कुछ सप्ताह बाद, एक बार फिर वही किसान अपने खेत में काम कर रहा था। इस बार एक चूहे ने वास्तव में उसके पैर को काट लिया। लेकिन जैसे ही किसान ने नीचे देखा, उसने एक साँप को वहाँ से जाते हुए देख लिया। अब उसका दिमाग उलझ गया। वह यह सोच बैठा कि साँप ने ही उसे काट लिया है।
इस बार वह डर और घबराहट में अपने होश खो बैठा। उसने तुरंत गाँव के वैद्य से साँप काटने का इलाज शुरू करवाया। लेकिन चूंकि यह ज़हर का मामला नहीं था, इसलिए कोई भी इलाज असर नहीं कर रहा था। इलाज की विफलता ने उसकी चिंता को और बढ़ा दिया। वह हर पल यही सोचता रहा कि उसके शरीर में ज़हर फैलता जा रहा है।
भय और चिंता ने उसे अंदर से कमजोर कर दिया। उसने खाना-पीना छोड़ दिया, नींद उड़ गई और शरीर धीरे-धीरे जवाब देने लगा। कुछ ही दिनों में वह पूरी तरह से टूट गया और अंततः उसकी मृत्यु हो गई — न कि साँप के ज़हर से, बल्कि अपने ही मन के वहम से।
वहम कभी-कभी ज़हर से भी अधिक खतरनाक होता है। जो बात सच नहीं है, यदि हम उसे सच मान लें, तो उसका असर असली ज़हर से भी घातक हो सकता है। इसलिए हर स्थिति में धैर्य और विवेक से काम लेना चाहिए।
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