
एक छोटे से गाँव के पास एक शांत और सुंदर तालाब था। उस तालाब में रहने वाले जलीय जीव-जन्तु, जैसे मछलियाँ, मेंढक, और अन्य छोटे जीव एक दूसरे के साथ शांति से रहते थे। यहाँ के मेंढक कभी एक-दूसरे से लड़ते-झगड़ते नहीं थे। लेकिन, एक दिन भारी बारिश के कारण कई अन्य मेंढक एक दूरस्थ तालाब से इस तालाब में आ गए। नए मेंढक लगातार पुराने मेंढकों से झगड़ने लगे, और तालाब में शांति बनाए रखना मुश्किल हो गया।
तालाब के बुजुर्ग मेंढक ने सोचा कि इस समस्या का कोई हल निकलना चाहिए। अंत में सभी मेंढकों ने मिलकर उस बुजुर्ग मेंढक को अपना राजा चुन लिया, जिसकी सलाह पर सभी मेंढक चलने लगे। लेकिन इस बुजुर्ग मेंढक की एक आदत थी – वह नए मेंढकों से बहुत जलता था। वह उन पर अच्छा न्याय नहीं करता था और हमेशा उनका तिरस्कार करता था।
एक दिन एक जहरीला साँप तालाब के पास आया। साँप ने तालाब के राजा से विनती की, “मुझे कुछ दिनों तक आपके तालाब के पास रहने की अनुमति दें, मैं आप लोगों को कोई हानि नहीं पहुँचाऊँगा।” राजा ने साँप की बात मानी, और बाकी सभी मेंढक भी मान गए कि साँप के पास रहना सुरक्षित रहेगा।
कुछ समय बाद, साँप ने राजा को बुलाया और कहा, “क्या आप और आपके साथियों को जंगल की सैर पर चलने का मन है? आप सभी मेरी पीठ पर बैठ जाइए, मैं आपको घूमाकर लाता हूँ।” मेंढक थोड़ा डरते हुए पर उत्साहित होकर साँप की पीठ पर चढ़ गए। एक-एक करके सभी मेंढक उसके ऊपर बैठ गए, और साँप उन्हें जंगल की ओर ले चला।
कुछ समय बाद, साँप ने राजा से कहा, “मुझे अब बहुत भूख लग रही है, और मैं आगे नहीं चल सकता।” फिर उसने राजा से कहा, “आप इस पीठ पर बैठे सबसे आखिरी मेंढक को खा लीजिए, ताकि मुझे कुछ ताकत मिले।” राजा ने तुरंत अपनी बात कही, और साँप ने वह मेंढक खा लिया। साँप फिर रास्ते पर कुछ और दूर चला, और वही काम दोहराया। वह एक-एक करके सभी मेंढकों को खा गया, और अंत में केवल राजा ही बचा।
अब, राजा ने अपनी गलती समझी, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। साँप ने राजा को भी खा लिया और फिर तालाब के सभी मेंढक समाप्त हो गए।
बिना सोचे-समझे निर्णय लेना हमेशा हानिकारक हो सकता है।
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