
बहुत समय पहले की बात है, ऊधमपुर नाम के एक छोटे से गाँव में एक साधु महात्मा निवास करते थे। वे अपने गहन ज्ञान, शांत स्वभाव और अडिग निश्चय के लिए पूरे गाँव में विख्यात थे। साधु महात्मा का एक सिद्धांत था — जो ठान लिया, उसे पूरा करके ही दम लेना। उनकी यह विशेषता ही उन्हें बाकी लोगों से अलग बनाती थी।
एक वर्ष, गाँव में भीषण सूखा पड़ा। महीनों तक बादल तो आए, पर बरसे नहीं। नदियाँ, तालाब और कुएँ सूख चुके थे। पीने के पानी तक की भारी समस्या खड़ी हो गई। खेत सूखे पड़े थे, और पशु-पक्षी भी तड़प रहे थे। जब कोई उपाय नहीं सूझा, तो गाँव वालों को एक ही आशा की किरण दिखाई दी — साधु महात्मा।
सभी ग्रामीण उनके पास पहुँचे और अपनी व्यथा सुनाई। साधु महात्मा ने बिना कुछ बोले अपनी आँखें बंद कीं और धीरे-धीरे नृत्य करना शुरू कर दिया। यह देख सब अचंभित हो गए। कुछ ही समय बाद बादल घिर आए और झमाझम बारिश शुरू हो गई। गाँव फिर से हरा-भरा हो गया। लोगों का विश्वास और भी मजबूत हो गया कि साधु महात्मा में कोई दिव्य शक्ति है।
कुछ समय बाद, दूसरे गाँव से लोग साधु महात्मा के पास आए और बोले कि उनके गाँव में भी भयंकर सूखा पड़ा है। वे साधु महात्मा से आग्रह करने लगे कि वे वहाँ भी वर्षा करवाएं। साधु महात्मा वहाँ गए और फिर से नृत्य आरंभ कर दिया। लेकिन इस बार तुरंत बारिश नहीं हुई। घंटों बीतते गए — एक, दो, चार… यहाँ तक कि दस घंटे हो गए, फिर भी बारिश नहीं हुई। लोग असहाय होकर बातें बनाने लगे: “शायद अब उनकी शक्ति चली गई है” या “यह सब दिखावा था।”
पर साधु महात्मा रुके नहीं। वे पूरे विश्वास के साथ नृत्य करते रहे। और अंततः, दसवें घंटे में आकाश काला हो गया और तेज़ बारिश शुरू हो गई। भीगे हुए लोगों ने उनके चरणों में गिरकर क्षमा माँगी।
तब साधु मुस्कराते हुए बोले:
“मैं कोई चमत्कारी पुरुष नहीं हूँ। न ही मुझे कोई मंत्र आता है। बस मुझे अपने विश्वास पर पूरा भरोसा है। मुझे पता था कि जब तक मैं नृत्य करता रहूँगा, वर्षा ज़रूर होगी। यह मेरे अटूट विश्वास का ही परिणाम है।”
अगर आपके विश्वास में सच्चाई और आपके लक्ष्य में दृढ़ता है, तो प्रकृति भी आपके आगे झुक सकती है। सफलता उन्हीं को मिलती है जो अंतिम साँस तक प्रयास नहीं छोड़ते।
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