
हिमालय की गोद में बसी मानसरोवर झील अपनी सुंदरता और शांति के लिए प्रसिद्ध थी। उसी झील में एक सुंदर, सफेद हंस निवास करता था। उसका शरीर बर्फ की तरह उजला और चाल बहुत ही आकर्षक थी। वह झील के जल में तैरते हुए आनंद से जीवन जीता था। वहीँ, झील के किनारे एक पेड़ पर एक काला कौवा रहता था, जो हंस की सुंदरता और खुशी को देखकर जलन महसूस करता था।
कौवा प्रतिदिन हंस को देखता और सोचता कि आखिर इस हंस की सुंदरता और शांति का राज क्या है? एक दिन उसने तय किया कि वह दिनभर पेड़ पर बैठकर हंस की गतिविधियाँ ध्यान से देखेगा। उसने पाया कि हंस सारा दिन झील में तैरता है और पानी के भीतर कीड़े-मकोड़े और जलीय घास खाता है। कौवा मन ही मन सोचने लगा, “अगर मैं भी इसी तरह दिनभर पानी में रहूँ और वही खाऊँ जो हंस खाता है, तो शायद मैं भी वैसा ही सुंदर दिखने लगूँगा।”
अगली सुबह कौवा बिना किसी तैयारी के पानी में उतर गया और हंस की नकल करने लगा। वह बार-बार अपने पंखों को गीला करता और जल में तैरने का प्रयास करता। उसने पूरा दिन इसी कोशिश में निकाल दिया कि उसके पंख भी सफेद हो जाएँ। लेकिन ठंडा पानी उसके शरीर को बर्दाश्त नहीं हुआ। उसके कुछ पंख टूटने लगे, और धीरे-धीरे उसे ठंड लगने लगी।
शाम होते-होते कौवे की हालत खराब हो गई। जब वह बाहर आया तो उसने पाया कि उसका रंग तो वैसा ही काला है, उल्टे उसकी तबीयत और बिगड़ गई है। अंततः कमजोरी और बीमारी के कारण उसने प्राण त्याग दिए।
हर जीव की अपनी खासियत होती है। दूसरों की नकल करने के बजाय अपनी पहचान और क्षमता को समझें। सफलता और सुंदरता आत्म-स्वीकृति से आती है, नकल से नहीं।
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