
बहुत समय पहले की बात है, एक शांत और सुंदर गाँव के पास एक बुद्धिमान मछुआरा रहा करता था। वह प्रतिदिन सुबह-सवेरे अपनी नाव लेकर पास की नदी में मछलियाँ पकड़ने जाया करता था। एक दिन की बात है, सूरज की पहली किरण के साथ वह अपनी नाव लेकर नदी की ओर निकल पड़ा। थोड़ी देर बाद उसने अपना जाल पानी में डाला और बैठकर इंतजार करने लगा।
कुछ समय बीता, और जाल में कुछ हरकत महसूस हुई। मछुआरा जल्दी से जाल को बाहर खींच लाया। जैसे ही उसने जाल देखा, उसकी आँखें चमक उठीं। जाल में एक छोटी-सी लेकिन बहुत ही सुंदर सुनहरी मछली फँसी थी। वह चमचमाती थी और उसकी चमक सूरज की रौशनी में और भी बढ़ गई थी।
मछुआरा जब उसे अपनी टोकरी में डालने लगा, तभी वह मछली अचानक बोल पड़ी, “हे मछुआरे, कृपया मुझे छोड़ दो। मैं अभी बहुत छोटी हूँ, मुझे खाने से तुम्हें ज्यादा लाभ नहीं होगा। अगर तुम मुझे छोड़ दोगे, तो मैं नदी में बड़ी होकर लौटूँगी और तब तुम्हें बड़ा लाभ दूँगी। मैं खुद तुम्हारे पास आ जाऊँगी और एक दिन तुम्हारे लिए स्वादिष्ट भोजन बनूँगी।”
बुद्धिमान मछुआरा थोड़ी देर के लिए चौंका, लेकिन फिर मुस्कराया और बोला, “तुम्हारी बातों में लालच है, लेकिन समझदारी नहीं। तुम्हारे कहे अनुसार अगर मैं तुम्हें छोड़ भी दूँ, तो क्या गारंटी है कि तुम फिर से इसी नदी में आओगी? और क्या पता तब मैं यहाँ रहूँ या न रहूँ। जो कुछ भी अभी मेरे हाथ में है, उसे मैं छोड़ नहीं सकता। भविष्य के अनिश्चित वादों पर भरोसा करना मूर्खता है।”
यह कहकर मछुआरे ने मछली को अपनी टोकरी में डाल लिया और अपनी नाव किनारे की ओर मोड़ दी।
बड़े-बड़े वादों के पीछे भागने से बेहतर है, जो लाभ अभी हाथ में है, उसे पहचानें और उसका उपयोग करें। एक छोटा लेकिन निश्चित लाभ, अनिश्चित भविष्य के बड़े वादों से कहीं अधिक मूल्यवान होता है।
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