
एक गाँव में एक अमीर सेठ की बड़ी दुकान थी जहाँ हर दिन सैकड़ों लोग सामान खरीदने आते थे। एक दिन अचानक उसकी दुकान में चोरी हो गई। चोर बहुत चालाक था और उसने सेठ की तिजोरी से नकदी और कीमती सामान से भरा बैग चुराया और भाग निकला।
भागते समय एक छोटे लड़के की नज़र उस चोर पर पड़ गई। वह लड़का तुरंत सेठ के पास गया और उसे सारी बात बता दी। सेठ चौंक गया और बिना समय गंवाए चोर का पीछा करने लगा। धीरे-धीरे गाँव के और लोग भी उसके साथ हो लिए और पूरे गाँव में चोर को पकड़ने की होड़ लग गई।
उधर, चोर थक चुका था और जानता था कि ज्यादा दूर नहीं भाग सकता। इसलिए उसने पैसे से भरा बैग सड़क के किनारे झाड़ियों में फेंका और खुद कहीं छिप गया। कुछ समय बाद वहाँ से दो राहगीर गुज़र रहे थे। उनमें से एक की नज़र उस बैग पर पड़ी। उसने बैग उठाया और देखते ही उसकी आँखें चमक उठीं।
पहला यात्री बोला, “वाह! मुझे यह बैग मिला है, लगता है इसमें पैसे हैं।”
दूसरे ने तुरंत टोका, “मुझे नहीं, हमें मिला है। हम दोनों साथ चल रहे थे और हमने ही इसे देखा है।”
लेकिन पहला यात्री लालच में आ गया और बोला, “नहीं! यह बैग मैंने पहले देखा, इसलिए यह मेरा है।”
इसी बीच पीछे से शोर सुनाई देने लगा – “पकड़ो! चोर को पकड़ो!” शोर सुनते ही वह लालची यात्री घबरा गया। सेठ और गाँव वाले वहाँ पहुँचे और उससे बैग छीन लिया। वह चिल्लाया, “यह बैग हमें रास्ते में पड़ा मिला था!” लेकिन उसका दोस्त चुप नहीं रहा। उसने ताने मारते हुए कहा, “अभी तक तुम ‘मैं-मैं’ कर रहे थे, अब जब मुश्किल आई है तो ‘हम-हम’ क्यों कर रहे हो? मैं साफ़ कहता हूँ कि मेरा इस बैग से कोई लेना-देना नहीं है।”
सेठ ने सच्चाई समझते देर नहीं की। उसने उस लालची व्यक्ति को गाँववालों की मदद से पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया।
लालच इंसान को अंधा बना देता है और अंत में उसे शर्मिंदगी और सज़ा ही मिलती है। अतः हमें हमेशा ईमानदारी और साझेदारी की राह पर चलना चाहिए।
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