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August 8, 2025May 11, 2025

कबूतर और चींटी

कबूतर और चींटी

 

जंगल के किनारे एक शांत और सुंदर नदी बहती थी। उसी नदी के पास एक घना, हरा-भरा पेड़ था, जिसकी सबसे ऊँची डाली पर एक बूढ़ा कबूतर रहता था। वह कबूतर बहुत दयालु और विनम्र स्वभाव का था। उम्र के चलते उसकी उड़ने की ताकत अब पहले जैसी नहीं रही थी, इसलिए वह ज़्यादातर समय अपने घोंसले में ही बिताता था।

कबूतर की सहृदयता और अच्छे व्यवहार के कारण जंगल के अन्य पक्षी और जानवर उसे बहुत मानते थे। वे जब भी भोजन की खोज में निकलते, लौटते समय कबूतर के लिए कुछ न कुछ ज़रूर ला देते। कबूतर कभी किसी से कुछ माँगता नहीं था, लेकिन उसकी सच्चाई और भलमनसाहत ही थी, जो सभी को उसकी मदद करने के लिए प्रेरित करती थी।

एक दिन सभी पक्षी भोजन की तलाश में बाहर गए हुए थे। गर्मी की तपती दोपहर थी और पेड़ की डालियाँ भी शांत थीं। तभी कबूतर की नजर नदी की तरफ गई। वहाँ उसने देखा कि एक छोटी-सी चींटी तेज़ बहाव में बहती जा रही है। वह बार-बार किनारे पर पहुँचने की कोशिश कर रही थी, लेकिन पानी की धार इतनी तेज़ थी कि उसे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था।

कबूतर यह देखकर विचलित हो गया। उसकी उम्र भले ही ज़्यादा हो गई थी, लेकिन उसका दिल अब भी बहुत बड़ा था। उसने तुरंत एक पत्ता तोड़ा और नदी में गिरा दिया। वह पत्ता बहते-बहते उस चींटी के पास पहुँचा। चींटी ने फुर्ती से पत्ते पर चढ़कर अपनी जान बचा ली। वह मन ही मन कबूतर को धन्यवाद देती रही और सोचने लगी कि एक दिन मैं ज़रूर इस उपकार का बदला चुकाऊँगी।

कुछ ही दिनों बाद एक शिकारी जंगल में आया। वह जानवरों को पकड़ने के लिए पेड़ों के पास छिपकर बैठा था। तभी उसकी नजर उस बूढ़े कबूतर पर पड़ी। उसने मन ही मन सोचा, “यह कबूतर उड़ नहीं सकता, इसे पकड़ना तो बहुत आसान होगा।” वह धीरे से निशाना साधकर पत्थर फेंकने ही वाला था कि तभी एक नुकीली चुभन उसके पैर में महसूस हुई।

चींटी ने शिकारी के पैर में जोर से काट लिया था। दर्द के मारे शिकारी की पकड़ ढीली हो गई और उसका निशाना चूक गया। पत्थर कबूतर को न लगकर नीचे गिर पड़ा। कबूतर घबराकर उड़ गया और एक दूसरी शाखा पर जा बैठा।

कबूतर समझ गया कि उसकी जान किसी ने बचाई है। तभी उसने नीचे देखा — वही चींटी मुस्कुरा रही थी। कबूतर ने अपने पंख फैलाए और कहा, “मैंने उस दिन एक जीवन बचाया था, और आज मेरे जीवन की रक्षा तुमने की।”

 

नैतिक सीख:

दया और मदद का भाव कभी व्यर्थ नहीं जाता। समय आने पर उसका फल अवश्य मिलता है।

 

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