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August 28, 2025June 15, 2025

डर पर विजय

 

डर पर विजय

 

 

किसी बड़े मैदान में बहुत सारे बच्चे फुटबॉल खेल रहे थे। उनका खेल देख, मैदान के किनारे बैठा एक लड़का, रोहित, मन ही मन सोच रहा था कि वह भी फुटबॉल खेले, लेकिन एक डर उसे हमेशा खाए जा रहा था। वह सोच रहा था, “अगर मैं खेलते वक्त गिर गया तो मुझे चोट लग सकती है।” इस डर के कारण वह खेल में हिस्सा नहीं ले पा रहा था। वह खेल को पूरी तन्मयता से देखता, लेकिन जब बच्चे गिरकर गोल करते या तेजी से खेलते, तो वह डर से अपनी आँखें बंद कर लेता। उसे लगता जैसे उसे खुद चोट लग गई हो।

रोहित का यह डर कोच के लिए एक संकेत बना। कोच उसकी हालत को समझते हुए उसके पास आए और उसे समझाने लगे। “रोहित, डर से कोई भी चीज हासिल नहीं होती। तुम्हें अपने डर का सामना करना होगा। फुटबॉल खेलना एक मजेदार अनुभव हो सकता है, लेकिन इसके लिए तुम्हें डर को छोड़कर खेल में भाग लेना होगा।” कोच की बातों ने रोहित को कुछ उम्मीद दी।

कोच के समझाने के बाद रोहित ने आखिरकार मैदान में कदम रखा। पहले दिन वह बहुत डरा हुआ था, हर कदम को सोच-समझ कर उठाता। उसे लगता था कि कहीं वह गिर न जाए और चोट न लग जाए। लेकिन धीरे-धीरे, जैसे-जैसे उसने खेल में भाग लिया, उसका डर कम होने लगा। उसने महसूस किया कि खेल में गिरना या हारना कोई बड़ी बात नहीं है, बल्कि यह एक सीखने का हिस्सा है।

रोहित ने अपने खेल में निखार लाना शुरू किया। उसने अपनी गलतियों से सीखा और धीरे-धीरे फुटबॉल खेल में निपुण हो गया। अब उसे खेल में मजा आने लगा था और उसका आत्मविश्वास भी बढ़ने लगा था।

आखिरकार, मेहनत और डर पर काबू पाने के बाद, रोहित एक दिन बहुत बड़ा फुटबॉल खिलाड़ी बन गया। उसकी मेहनत और साहस ने उसे वह स्थान दिलाया, जिसकी वह हमेशा ख्वाहिश रखता था।

 

नैतिक सीख:

जो डर का सामना करता है, वही आगे बढ़कर अपनी पहचान बनाता है। सफलता डर से नहीं, साहस से मिलती है।

 

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