
बहुत समय पहले की बात है। सोनवन नाम के एक घने जंगल के किनारे एक शांत गाँव बसा हुआ था। उसी जंगल में एक नन्हा और चंचल भोलू नाम का मेमना रहता था। भोलू बहुत मासूम था लेकिन समय के साथ उसे जंगल के खतरों के बारे में थोड़ी समझ आने लगी थी।
एक दिन जंगल में घूमते हुए भोलू अचानक एक रघु नामक शिकारी की नज़र में आ गया। शिकारी को कई दिनों से कोई शिकार नहीं मिला था, इसलिए वह भोलू को देखकर बहुत खुश हो गया और तुरंत अपने भाले के साथ उसके पीछे दौड़ पड़ा। भोलू जान बचाने के लिए दौड़ने लगा, उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था और मन ही मन वह सोच रहा था, “अगर आज तेज़ नहीं भागा, तो शायद ज़िंदा न बच पाऊँ।”
भागते-भागते भोलू नदी किनारे पहुँचा। वहाँ गोविंद नाम का एक मछुआरा अपनी नाव के पास मछलियाँ पकड़ने की तैयारी कर रहा था। भोलू ने हांफते हुए गोविंद से कहा, “भैया! मेरी जान बचा लो, एक शिकारी मेरे पीछे पड़ा है। क्या मैं आपकी नाव में छिप सकता हूँ?”
गोविंद एक क्षण को सोच में पड़ गया, फिर मानवता के नाते बोला, “हाँ, छिप जाओ।” भोलू तुरंत नाव में जाकर एक मछली के बड़े टोकरों के पीछे छिप गया।
कुछ देर बाद शिकारी वहाँ पहुँचा और गोविंद से पूछा, “क्या तुमने इस रास्ते से एक मेमना भागते हुए देखा है?” गोविंद ने मुँह से तो कहा, “नहीं देखा,” लेकिन उसी समय उसने नाव की ओर हल्का सा इशारा कर दिया, जैसे उसकी आदत हो।
शिकारी ने उसकी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और सोचा कि शायद शिकार आगे निकल गया होगा, इसलिए वह वहाँ से चला गया।
जब शिकारी चला गया, तो भोलू धीरे-धीरे नाव से बाहर निकला। गोविंद ने गर्व से मुस्कराते हुए कहा, “देखा छोटू! मैंने कैसे तुम्हारी जान बचा ली?”
लेकिन भोलू ने गंभीरता से उत्तर दिया, “जान तो बची, लेकिन तुम्हारे इशारे ने मेरा विश्वास तोड़ दिया। अगर वो शिकारी ज़रा भी चालाक होता, तो मैं आज तुम्हारी वजह से मारा जाता। मदद करना अच्छी बात है, लेकिन जब किसी की जान दाँव पर हो, तो समझदारी से करनी चाहिए। तुम पर दोबारा भरोसा करना मेरे लिए मुश्किल होगा।”
भोलू यह कहकर तेज़ी से जंगल की ओर भाग गया। गोविंद वहीं खड़ा रहा, शर्मिंदा और चिंतित। उसने ठान लिया कि आगे से वह हर बात को सोच-समझकर करेगा और कभी भी किसी के साथ विश्वासघात नहीं करेगा।
विश्वास की रक्षा सिर्फ शब्दों से नहीं, इशारों से भी करनी होती है।
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