
एक छोटे से गाँव में रामू नाम का एक किसान रहता था। उसका घर पुराना और लकड़ी का बना हुआ था, जहाँ रात को खट-खट की आवाजें आती रहती थीं। दरअसल, रामू के घर में बहुत सारे चूहे रहते थे। वे चूहे रात भर इधर-उधर दौड़ते, अनाज कुतरते, कपड़े काटते और पूरे घर को अस्त-व्यस्त कर देते थे।
रामू ने परेशान होकर एक बिल्ली पाल ली। वह बिल्ली न केवल चालाक थी, बल्कि बहुत फुर्तीली भी थी। कुछ ही दिनों में उसने कई चूहों को पकड़ कर खा लिया। धीरे-धीरे चूहों की संख्या घटने लगी और जो बचे थे, वे हमेशा डर और चिंता में जीने लगे।
अब हालत यह हो गई थी कि कई चूहे अपने बिलों से बाहर निकलने की हिम्मत भी नहीं कर पाते थे। उन्हें डर था कि कहीं बिल्ली अचानक हमला न कर दे। कुछ भूख से मरने लगे थे क्योंकि बाहर निकलने की हिम्मत ही नहीं होती थी।
एक दिन चूहों ने इस खतरे से छुटकारा पाने के लिए एक आपात बैठक बुलाई। सभी चूहे एक बड़े कोने में जमा हुए। वहाँ बुज़ुर्ग, युवा और बच्चे चूहे सभी अपनी-अपनी राय देने लगे कि आखिर इस बिल्ली से कैसे निपटा जाए। लेकिन किसी भी उपाय को सभी ने स्वीकार नहीं किया। या तो वह बहुत जोखिम भरा था या फिर असंभव।
अचानक एक छोटे से चूहे ने संकोच से हाथ उठाया और कहा, “मेरे पास एक सरल और बढ़िया उपाय है।” सब उसकी ओर देखने लगे। उसने कहा, “हमें बिल्ली के गले में एक घंटी बाँध देनी चाहिए। जब भी वह चलेगी, घंटी की आवाज से हमें पहले ही पता चल जाएगा और हम समय रहते छिप सकेंगे।”
सभी चूहे खुशी से चिल्ला उठे, “यह तो बहुत शानदार उपाय है!” हर कोई उस छोटे चूहे की तारीफ करने लगा। लेकिन तभी एक अनुभवी, बूढ़ा चूहा खड़ा हुआ और बोला, “बिल्कुल! उपाय तो अच्छा है, लेकिन क्या तुममें से कोई बता सकता है कि वह घंटी बिल्ली के गले में बाँधेगा कौन?”
सारे चूहे चुप हो गए। जोश और उत्साह ठंडा पड़ गया। अब सब एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे। सभी को यह तो समझ आ गया था कि योजना बनाना आसान है, लेकिन उसे अमल में लाना बहुत कठिन।
केवल सुझाव देना काफी नहीं होता, असली बुद्धिमानी उसे कार्यरूप देने की क्षमता में होती है। कहने और करने में बहुत बड़ा अंतर होता है।
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