
बहुत समय पहले की बात है। दो मित्र, रामू और श्यामू, किसी ज़रूरी काम से जंगल के रास्ते जा रहे थे। दोनों में बचपन से गहरी दोस्ती थी और एक-दूसरे पर बहुत विश्वास करते थे। जंगल का रास्ता लंबा और सुनसान था, लेकिन दोनों हँसी-मज़ाक करते हुए आगे बढ़ते रहे।
जैसे-जैसे वे जंगल के बीचों-बीच पहुंचे, अचानक झाड़ियों में से एक भयंकर भालू उनके सामने आ गया। दोनों के होश उड़ गए। जान बचाने के लिए रामू झटपट नज़दीकी पेड़ पर चढ़ गया, क्योंकि उसे पहले से पेड़ पर चढ़ना आता था। लेकिन श्यामू को पेड़ पर चढ़ना नहीं आता था। वह असहाय सा इधर-उधर देखने लगा, लेकिन कोई उपाय नहीं सूझा।
उसे याद आया कि उसने कहीं सुना था कि भालू मरे हुए प्राणियों को नहीं खाता। बस फिर क्या था, श्यामू ज़मीन पर लेट गया और अपनी साँसें रोक लीं। भालू उसके पास आया, उसके सिर को सूंघा, कान के पास मुँह ले गया और फिर कुछ पलों तक उसके शरीर को सूँघता रहा। लेकिन जब उसे कोई हलचल नहीं दिखाई दी, तो उसने मान लिया कि यह व्यक्ति मर चुका है। भालू वहाँ से चला गया।
रामू जो कि पूरी घटना को पेड़ से देख रहा था, भालू के जाते ही नीचे उतर आया। वह श्यामू के पास आया और मज़ाक के लहजे में बोला, “अरे यार, ऐसा लग रहा था जैसे भालू तेरे कान में कुछ कह रहा हो! क्या बताया उसने?”
श्यामू ने गंभीर होकर जवाब दिया, “हाँ, भालू ने मेरे कान में कहा कि ऐसे दोस्तों से दूरी बनानी चाहिए जो कठिन समय में साथ छोड़ देते हैं।” रामू को यह सुनकर बहुत शर्म महसूस हुई। वह समझ गया कि उसने दोस्ती के नाम पर बहुत बड़ा धोखा किया है। उसने श्यामू से माफ़ी माँगी और वादा किया कि आगे कभी भी उसे अकेला नहीं छोड़ेगा।
सच्चा मित्र वही होता है जो संकट के समय भी साथ खड़ा रहे। जो मुश्किल में छोड़ दे, वह केवल नाम का दोस्त होता है।
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