
बहुत समय पहले की बात है। एक घने जंगल में एक लोमड़ी और एक गधा साथ-साथ रहते थे। दोनों में बहुत गहरी मित्रता थी। वे अक्सर साथ घूमते, खाते-पीते और बातें करते रहते थे। लोमड़ी चालाक और तेज दिमाग वाली थी, जबकि गधा सीधा-सादा और भोला था। एक दिन गर्मी के कारण दोनों नदी की ओर पानी पीने जा रहे थे, तभी रास्ते में लोमड़ी की नजर एक पेड़ के नीचे पड़ी शेर की खाल पर पड़ी। वह खाल किसी शिकारी द्वारा छोड़ी गई थी।
लोमड़ी के मन में एक शैतानी विचार आया। उसने सोचा कि अगर वह अपने दोस्त गधे को शेर की खाल पहना दे, तो जंगल के जानवर उसे असली शेर समझेंगे और डर के मारे उसकी हर बात मानेंगे। गधा पहले तो डरा, लेकिन लोमड़ी की बातों में आकर वह तैयार हो गया। लोमड़ी ने गधे को शेर की खाल पहनाई और उसे जंगल के बीचोबीच एक ऊँचे पत्थर पर बैठा दिया। खुद वह उसके पास मंत्री की भूमिका निभाने लगी।
अब हर शाम जंगल में “शेर दरबार” लगता, जिसमें गधा शेर की तरह बैठा रहता और लोमड़ी जानवरों की फरियादें सुनती। सारे जानवर डर के मारे उसकी बातें मान लेते और दूर-दूर से भेंट लेकर आते। गधा मन ही मन बहुत खुश होता, लेकिन वह शांति से बैठना पसंद करता क्योंकि बोलने से उसकी असलियत खुल सकती थी।
एक दिन की बात है, दरबार से पहले गधा अकेला घास चर रहा था। पास ही एक पेड़ पर बैठा बंदर ‘नीलू’ यह सब देख रहा था। उसे शक हुआ कि कोई असली शेर घास क्यों खाएगा? उसने अगले दिन जंगल के अन्य जानवरों को यह बात बताई और सबने मिलकर गधे की असलियत पता लगाने की योजना बनाई।
शाम को दरबार लगा और गधा फिर से शेर की खाल पहनकर बैठा। तभी कहीं से एक गधी की आवाज “चिपों-चिपों” आई। असली भावुकता में गधा खुद को रोक नहीं पाया और जोर-जोर से वही आवाज निकालने लगा। उसी क्षण सभी जानवर समझ गए कि यह तो शेर नहीं, गधा है!
गुस्से में आकर सभी जानवरों ने मिलकर गधे और लोमड़ी की जमकर पिटाई की और शेर की खाल को फाड़ दिया। उस दिन के बाद दोनों जंगल छोड़कर भाग गए।
झूठ और दिखावा ज्यादा समय तक नहीं टिकता। सच्चाई एक न एक दिन सामने आ ही जाती है। बाहरी रूप से नहीं, बल्कि आचरण और व्यवहार से पहचान होती है।
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